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pitru paksh हिंदू संस्कृति में पितृ पक्ष क्यों मनाया जाता है, इसका क्या महत्व है, यहां जानिए

सनातन धर्म में पूर्वजों को देवताओं के बराबर का सम्मान दिया जाता है

pitru paksh गणेश चतुर्थी से 11 दिन बाप्पा की आराधना के बाद गणपति विसर्जन के साथ सबकी आँखें नम कर अपने गाँव चले गए। लेकिन अब अनंत चतुर्दशी के बाद वक़्त आ चुका है 15 दिनों का पितृ पक्ष पर्व मनाने का, हम सभी के हिंदू संस्कृति के इसे क्यों मनाया जाता है ? और इसमें किनकी पूजा अर्चना की जाती है! ये कई जानकारियां हम आप तक पहुचा रहे हैं, तो आइये जानते हैं पितृ पक्ष के बारे में-

pitru paksh मृत पूर्वजों की आत्मा की शांति

pitru paksh हिदू संस्कृति में पितृ पक्ष का एक महत्वपूर्ण पर्व है….. भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष के पंद्रह दिनों तक मनाए जाने वाला ये पर्व पित्तरों यानि मृत पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है।

बता दें कि पितृ पक्ष जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है। हमारे देश में प्राचीन समय से ही मनाया जा रहा है, क्योंकि सनातन धर्म में पूर्वजों को देवताओं के बराबर का सम्मान दिया जाता है। जिस तरह से ईश्वर हमारी रक्षा और संकटों में सहायता करते हैं। वैसे ही हमारे पूर्वजों द्वारा हमारा पालन-पोषण किया जाता है।

इसलिए हम अपने इस जीवन के लिए सदैव उनके ऋणी है। मान्यताओं के अनुसार जो भी व्यक्ति समर्पण तथा कृतज्ञता भावना से पितृ पक्ष में धार्मिक रीति रिवाजों का पालन करता है, उसके पितर उसे मुक्ति का मार्ग दिखाते हैं।

pitru paksh जैसे -जैसे सभी चीजों में दिन प्रतिदिन बदलाव आता जा रहा है। उसी तरह लोगों के रीति रिवाजों के मानने में भी बदलाव आ गया है। पहले के अपेक्षा में आज के समय में पितृ पक्ष मनाने के तरीकों में काफी परिवर्तन आ गया है। पहले के समय में लोग इस पर्व काफी श्रद्धापूर्वक मनाया जाता था। इस दौरान पूरे पितृ पक्ष तक लोगो द्वारा मांस-मदिरा चीजों का सेवन नहीं किया जाता था लेकिन आज के समय में ज्यादातर लोग इन मान्यताओं में विश्वास नहीं रखते।

पितृ पक्ष के दौरान वाराणसी, गया, बद्रीनाथ, नासिक और रामेश्वरम जैसे प्रमुख तीर्थ स्थलों पर भारी संख्या में श्रद्धालु इकठ्ठा होते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन जगहों पर पितृ विसर्जन करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं, खासतौर से गया में पितृ विसर्जन के लिए लाखों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं।

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हिंदू संस्कृति में पितृ पक्ष में पूर्वजों का आशीर्वाद

pitru paksh यदि हम पितृ पक्ष के इतिहास के बारे में बात करे तो इस त्योहार से जुडी कुछ कहानियां है पितृ हिंदू संस्कृति में पितृ पक्ष का एक महत्वपूर्ण पर्व जोगे तथा भोगे दो भाई थे। दोनो अलग-अलग घरों में रहा करते थे, एक तरफ जोगे काफी धनी था वही भोगे निर्धन था लेकिन दोनो भाईयों में काफी प्रेम था। जोगे की पत्नी को धन का अभिमान था, किंतु भोगे की पत्नी बड़ी सरल हृदय थी।

pitru paksh पितृ पक्ष आने पर जोगे की पत्नी ने उससे पितरों का श्राद्ध करने के लिए कहा तो जोगे इसे व्यर्थ का कार्य समझकर टालने की चेष्टा करने लगा, किंतु उसकी पत्नी समझती थी कि यदि ऐसा नहीं करेंगे तो लोग बातें बनाएंगे। फिर उसे अपने मायके वालों को दावत पर बुलाने और अपनी शान दिखाने का यह उचित अवसर लगा।

इस बात पर वह बोली कि आप मेरी परेशानी की वजह से ऐसा कह रहे हैं, किंतु इसमें मुझे कोई परेशानी नही होगी। मैं भोगे की पत्नी को बुला लूंगी और हम दोनो मिलकर सारा काम कर लेगे। इसके बाद उसने जोगे को अपने ससुराल मायके न्योता देने भेज दिया। दूसरे दिन उसके बुलाने पर भोगे की पत्नी सुबह आकर काम जुट गई सारा काम निपटाकर वह अपने घर आई क्योंकि उसे भी अपने घर में पितरों का तर्पण करना था। इस प्रकार से दोपहर का समय हो गया और जब पितर धरती पर उतरे तो उन्होंने देखा कि जोगे के यहां उसके ससुराल वाले भोजन में जुटे है।

जब वह जोगे के यहा गये पर उसके पास कुछ ना था, इसलिए उसकी पत्नी ने पितरो के नाम पर अगियारी जला दी थी। पितरों ने अगियारी की राख चाटी और भूखे ही नदी के तट पर जा पहुंचे। इस पर जोगे-भोगे के पितरों ने सोचा कि यदि भोगे धनवान होता तो उन्हें भूखा नही रहना पड़ता। यह सब सोचकर सभी पितरों ने भोगे को आशीर्वाद दिया की वह धनी हो जाये और उसकी दरिद्रता दूर हो जाये।

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पितरों की कृपा से भोगे का घर सोने-चांदी से भर गया लेकिन भोगे को धन पाकर किसी प्रकार का भी घंमड नही हुआ। इसके बाद अगले श्राद्ध के दिन भोगे की पत्नी ने छप्पन प्रकार के व्यंजन बनाए ब्राम्हणों को बुलाकर श्राद्ध करवाया तथा उन्हें भोजन कराकर दक्षिणा दी। भोगे और उसके पत्नी के इस कार्य से उसके पितर बहुत ही प्रसन्न और तृप्त हो गये।

पितृ पक्ष को लेकर इतिहासकारों का मानना है कि पितृ पक्ष तथा श्राद्ध का यह अनुष्ठान वैदिक काल ले चला आ रहा है। प्राचीन समय में लोग इस पर्व को अपने पितरों के आत्मा के शांति के लिए मनाते आ रहे है क्योंकि उनका मानना है कि बिना पितरों को तृप्त किये व्यक्ति को अपने जीवन में सफलता और देवताओं की कृपा नही मिल सकती है।

तो आप भी सभी त्योहारों का आनंद ले देवताओं और अपने पितरो की पूजा अर्चना करें।

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