फॉरेस्ट सर्वे : 30 करोड़ का टेंडर 300 करोड़ रुपए कैसे हुआ? वन विभाग के अधिकारियों का बड़ा खेला, जानिए पूरा मामला
रायपुर। छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार के समय कैंपा फंड में भारी बंदरबांट हुआ था। फंड के दुरुपयोग को लेकर बीजेपी ने जोरदार घेराबंदी की थी। आरोप था कि भू-पे की सरकार ने 30 करोड़ रुपए के टेंडर को 300 करोड़ रुपए में बदल दिया। अब उसी टेंडर को भाजपा सरकार में फाइनल कराने की तैयारी की जा रही है। खबर है कि इसी हफ्ते बिलिंग फाइनल होनी है।
गौरतलब है कि भू-पे सरकार में कैंपा फंड से करोड़ों की कमीशनखोरी का खुलासा हुआ था। एक राजनैतिक दल को विधानसभा चुनाव के दौरान वन विभाग की ओर से चंदे में मोटी रकम दी गई। प्रदेश में यह मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ है, और अधिकारी भ्रष्टाचार का खेल फिर से शुरू कर दिया है।
जानकारी के अनुसार, पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में ED ने ताबड़तोड़ कार्रवाई की थी। इस कार्रवाई से “अरण्य भवन” में जबरदस्त खौफ था। जिसके चलते फर्जी टेंडर को जारी करने में अधिकारियों ने अपने हाथ पीछे खींच लिए थे। लेकिन गौर करने वाली बात है कि उसे अब भाजपा सरकार में जस के तस जारी कर दिया गया है।
सूत्रों के अनुसार, इसकी भी फिक्सिंग हो चुकी है। टेंडर की शर्तों को लेकर वन विभाग में नया विवाद खड़ा कर दिया गया है। यह टेंडर पहले की भू-पे सरकार की तर्ज पर शर्तों के साथ उसी कंपनी को दिए जाने के लिए फिक्स कर दिया गया है, जिससे भू-पे सरकार का करार था।
सूत्रों का कहना है कि पूर्ववर्ती भूपेश बघेल सरकार ने अपने चहेतों को फॉरेस्ट सर्वे का कार्य सौंपने के लिए कुछ खास शर्तें टेंडर में लगाई थी। ये शर्तें सिर्फ वही कंपनी पूरी करती है। जिसे यह टेंडर दिया जाना सुनिश्चित किया गया था।
बता दें कि बीजेपी शासनकाल में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का खौफ खत्म होते ही वन विभाग के अधिकारियों ने एक बार फिर टेंडर फिक्सिंग का खेल शुरू कर दिया है। इस मामले में वन विभाग के मुखिया केंपा राव की भूमिका सवालों के घेरे मे है।
सूत्र का कहना है कि Genesis और Mindtree, दोनों कंपनियों को सीधा फायदा पहुंचाने के लिए टेंडर की शर्तों में कोई बदलाव नहीं किया गया है। सूत्रों के मुताबिक मात्र 30 करोड़ के सर्वे के कार्य को 300 करोड़ में सौंपने के लिए केंपा राव ने दिन रात एक कर दिया है।
छत्तीसगढ़ में जंगलों का सर्वे होना है। इसके लिए Forest lidar 3D mapping survey किया जाना है। इस कार्य के लिए छत्तीसगढ़ से बाहर की मात्र 2 कम्पनियों ने रुचि दिखाई थी। सूत्र बताते हैं कि दोनों ही कंपनियों का आपस में टाई- अप भी है। इन कंपनियों ने पूर्ववर्ती भू-पे सरकार के कार्यकाल में वन विभाग के प्रभावशील अधिकारियों के साथ सांठ-गांठ कर कुछ खास ऐसी शर्तें टेंडर में शामिल करवाई थी, जो दूसरी कंपनियां पूरा नहीं करती है। जबकि सर्वे का कार्य सामान्य प्रक्रिया के तहत पूरा किया जाना है।
खास शर्तों के चलते कई योग्य कंपनियों को पहले से ही बाहर का रास्ता दिखाने के लिए अनावश्यक रूप से कुछ खास शर्तें लागू कर दी गई है। टैंडर फिक्सिंग के आरोप वन विभाग पर लग रहे हैं।
विधानसभा चुनाव 2023 के पूर्व ED के खौफ को देखते हुए वन विभाग के अधिकारियों ने इस टेंडर को जारी किए जाने के मामले में अपने कदम आगे नहीं बढ़ाए थे। लेकिन अब मौका मिलते ही उनकी कार्यप्रणाली ठीक उसी तर्ज पर आ गई है, जैसे की कांग्रेस सरकार में थी।
सूत्रों हवाले से पता चला है कि भू-पे सरकार के कार्यकाल में यह कार्य उस चुनिंदा कंपनियों से कराने के लिए पहले ही मोटा कमीशन ले लिया गया था। भू-पे को उम्मीद थी कि राज्य में कांग्रेस की पुनर्वापसी होगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
बताया जाता है कि अब कंपनी के दबाव में वन विभाग के अधिकारियों ने पुरानी शर्तों को जस की तस रखते हुए टेंडर जारी कर दिया था। इस मामले में वन विभाग के कैंपा राव की प्रतिक्रिया नहीं आई है। बोल भारत मीडिया को उनकी प्रतिक्रिया का इंतजार है।