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Bastar बना धर्मांतरण के लिए ईसाई समुदाय का हॉट स्पॉट, हो सकता है झारखंड और पूर्वोत्तर राज्यों जैसी स्थिति

25 से 30 प्रतिशत तक आदिवासी हो चुके हैं धर्मांतरित

जगदलपुर के 48 वार्डों में 100 से ज्यादा चर्च 

रायपुर। Bastar में धर्मांतरण से आदिवासियों के अस्तित्व पर गंभीर संकट पैदा हो गया है। हालात यह हैं कि अगले दो दशक में बस्तर की पूरी डेमोग्राफी ही बदल जाएगी। इससे यहां के हालात मिजोरम, नागालैंड, मेघालय जैसे हो जाएंगे। इस बात की जरा भी चिंता राजनैतिक दलों से जुड़े यहां के बड़े आदिवासी नेताओं को नहीं हैं। वोट बैंक की राजनीति में आदिवासी अस्मिता से खुलकर खिलवाड़ होने दिया जा रहा है। हद तो तब हो जाती है, जब बस्तर के एक बड़े आदिवासी कांग्रेस नेता विधानसभा में दावे के साथ कह देते हैं कि बस्तर में एक भी धर्मांतरण नहीं हुआ है।

यह हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि आंकड़े हकीकत बयां कर रहे हैं। वैसे तो पूरे बस्तर संभाग के सातों जिले धर्मांतरण की जद में आ चुके हैं, मगर यहां हम सिर्फ बस्तर जिले और जगदलपुर का ही जिक्र कर रहे हैं। जिले के पचासों नागरिकों से चर्चा करने के बाद निष्कर्ष सामने आया, वह काफी चिंतनीय है। इस बात को लेकर चार बार के बस्तर संभाग के एक लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के सांसद और केंद्र में मंत्री रहे, बड़े आदिवासी ने भी चिंता जताई है। उनका आकलन यह है कि बस्तर संभाग में लगभग 25 से 30 प्रतिशत आदिवासियों सहित अन्य समाजों के लोगों का भी बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन हो चुका है और धर्मांतरण का यह खेल बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहा है। अगर राज्य और केंद्र सरकारों तथा आदिवासी नेताओं ने इस पर गंभीरता नहीं दिखाई तो आने वाले 25-30 साल के भीतर बस्तर के हालात पूर्वोत्तर के राज्य नागालैंड, मिजोरम, मेघालय जैसे हो जाएंगे। यहां के आदिवासी अपनी जमीन, अपनी कला संस्कृति और पूजा पद्धति से पूरी तरह वंचित कर दिए जाएंगे।

आदिवासी कुंभ से उम्मीद

8 दिसंबर से 10 दिसंबर के बीच कांकेर, बालोद और धमतरी जिलों के सरहदी क्षेत्र में राष्ट्रीय राजमार्ग-30 के आसपास आदिवासियों का बड़ा सम्मेलन आदिवासी कुंभ होने जा रहा है। खबर है कि इस सम्मेलन में धर्मांतरण पर गंभीरता से विचार मंथन होगा और इसे रोकने के उपाय तलाशे जाएंगे। सूत्र बताते हैं कि सर्व आदिवासी समाज के कुछ बड़े नेताओं ने नागपुर और नई दिल्ली जाकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बड़े नेताओं से संपर्क किया है और उनसे भी इस आदिवासी कुंभ में प्रतिनिधि भेजने का अनुरोध किया है। चर्चा है कि आरएसएस की सामाजिक समरसता इकाई के राष्ट्रीय संयोजक रामलाल इस कार्यक्रम में आ सकते हैं। इस आदिवासी कुंभ से कुछ उम्मीदें हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक संगठन जनजातीय सुरक्षा मंच के रूप में काम कर रहा है। छत्तीसगढ़ की पहले की भाजपा सरकार में वन मंत्री रहे गणेश राम भगत इसके राष्ट्रीय संयोजक हैं। इसके प्रदेश संयोजक कांकेर सांसद भोजराज नाग और सह संयोजक महेश कश्यप हैं। मंच की मांग है कि धर्म बदल चुके आदिवासियों का आरक्षण समाप्त किया जाए और इसके लिए लोकसभा में कानून बनाया जाए।

आपदा में ढूंढ लिया अवसर

कोरोना काल को धर्मांतरण का स्वर्णिम काल रहा। जब पूरा देश कोरोना की चपेट में था, तब एक धर्म विशेष के लोगों ने इस आपदा को अवसर के रूप में उपयोग किया। बाइबल का सभी भाषाओं में अनुवाद करने वाली संस्था अनकोल्डिंग वर्ल्ड का दावा है कि 2021 में जब पूरा देश और छत्तीसगढ़ कोरोना की चपेट में था तब सभी चर्च को यह निर्देश दिया गया था कि हर 10 गांवों के बीच एक प्रार्थना सभा आयोजित की जाए। इस पर बखूबी अमल भी किया गया। कई स्थानों पर ऑनलाइन एवं व्हाट्सएप के माध्यम से यह कार्यक्रम आयोजित किया। इसके जरिए धर्म परिवर्तन कराने में व्यापक सफलता भी मिली। इस संस्था के सीईई डेविड रीव्स का कहना है कि कोरोना काल में एक लाख लोगों का धर्म परिवर्तन करवाया गया। बस्तर में धर्मांतरण को लेकर विवाद की स्थिति निर्मित होती आई है। धर्म परिवर्तन कर चुके आदिवासी और मूल आदिवासियों के बीच शादी विवाह और मृत्यु के कार्यक्रम में विवाद की स्थिति निर्मित हो जाती है।

जगदलपुर शहर में सौ चर्च

बस्तर संभाग मुख्यालय जगदलपुर की बात करें तो यहां के 48 वार्डों है में 100 से ज्यादा चर्च बन चुके हैं। जो यह संकेत देते हैं कि संभाग मुख्यालय जगदलपुर की यह स्थिति है, तो जिले के गांवों की स्थिति क्या होगी। जगदलपुर शहर और बस्तर जिले में सिर्फ आदिवासी ही नहीं बल्कि साहू समाज, देवांगन समाज और अन्य समाजों के लोग भी हजारों की तादाद में धर्मांतरित हो चुके हैं। जो लोग धर्म परिवर्तन कर चुके हैं वे जिला प्रशासन से मांग कर रहे हैं कि उन्हें श्मशान घाट के लिए जमीन उपलब्ध कराई जाए। इसके लिए उन्होंने आवेदन भी दिया है। लेकिन किस जिले में कितनी संख्या में लोग धर्म परिवर्तन कर चुके हैं, यह नियमानुसार है या नहीं इस पर सरकार और प्रशासन को विशेष ध्यान देना होगा और जो लोग ऐसे आवेदन दे रहे हैं, उनसे मांग की जानी चाहिए कि आपकी संख्या कितनी है कि कितने लोगों ने धर्म परिवर्तन कर ईसाई धर्म स्वीकार किया है, उन्होंने धर्म परिवर्तन नियमानुसार किया है या नहीं, उनके दस्तावेज प्रस्तुत किया जाएं। इससे सही आंकड़े भी सामने आ सकते हैं।

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