होलाष्टक फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से शुरू होकर दहन के दिन समाप्त होता है। पुराण के अनुसार, भक्त प्रह्लाद भगवान नारायण की उपासना करते थे। लेकिन उनके पिता असुर राज हिरण्यकश्यप चाहते थे कि मेरा पुत्र मेरी उपासना करें। मेरे शत्रु नारायण की उपासना नहीं करे। इसलिए उन्हें फाल्गुन अष्टमी से लेकर के फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा तक यानी आठ दिन अनेक प्रकार की यातनाएं दी गई। लेकिन श्रीहरि ने उनको बचा लिया। प्रह्लाद को किसी प्रकार का नुकसान नही हुआ।
होलाष्टक के समय वर्जित कार्य
विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन, नामकरण, एवं विद्यारम्भ आदि सभी मांगलिक कार्य या कोई नवीन कार्य प्रारंभ नही करना चाहिए।
सावधान रहें
होलाष्टक के समय घर से बाहर बिना वजह भ्रमण नही करना चाहिए। इस समय अनेक प्रकार की नकारात्मक शक्तियां प्रवाहित होती है। सुगंधित तेल का उपयोग नही करना चाहिए। अपने इष्ट की उपासना करनी चाहिए।
होलाष्टक 17 मार्च से रविवार से शुरू होगा और 25 मार्च रविवार को समाप्त होगा। 16 मार्च की रात 9:39 से फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि लग रही हैं और 17 मार्च को सुबह 9:53 पर खत्म हो रही है। उदयातिथि के आधार पर फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि 17 मार्च को हैं, इस वजह से होलाष्टक का प्रारम्भ 17 मार्च से हो रहा है। होलाष्टक के समय विशेषकर फाग उत्सव मनाया जाता है। मंदिरों बम ठाकुर बजी कर साथ भावमय फूलों और गुलाल की होली खेली बजाती है।
हिरणकश्यप ने खुद प्रहलाद को मारना चाहा
हिरणकश्यप ने प्रहलाद से कहा मैं तुम्हारा वध करूंगा। देखता हूं कन्हा है तुम्हारा भगवान? इस पर प्रहलाद ने कहा कि हर कण में भगवान है। हिरणकश्यप ने प्रह्लाद से पूछा कि खंभे में भी है। इसके बाद हिरणकश्यप ने गुस्से में ख़म्भे पर लात मारी। तभी ख़म्भे में से नृसिंह भगवान आकर हिरणकश्यप के सामने खड़े हो गए। उन्होंने हिरणकश्यप के सामने खड़े हो गए। उन्होंने हिरणकश्यप को अपनी गोद मे रखा और नाखून से उसका शरीर चीर दिया। इस तरह हिरणकश्यप अपने वरदान के अनुरूक न पृथ्वी पर, न आकाश में, न किसी अस्त्र से, न देव, ना मानव वबल्कि नृहसिंह भगवान के हाथों मारा गया।